रविवार, 28 अक्टूबर 2012
Dog
Dog: Here is your number one companion - cute, talented and loyal. He can sit, lie down and roll over. Try giving him a pet and watch how he responds. Keep your dog entertained by playing ball or giving him a bone. Reward him by giving him a treat. To get him to sit, double-click your mouse on the ground close to him. Double-click again to get him to lie down. Then hold your mouse button down and make a circular motion to tell him to roll over.
अंगूर व मधुमेह
अगर आप नियमित तौर पर अंगूर का सेवन
करते हैं तो आप कभी भी मधुमेह का शिकार नहीं होंगे क्योंकि अंगूर में वे तत्व होते
हैं जो आपको मधुमेह से बचाते हैं। अंगूर का सेवन मधुमेह के एक अहम कारक मेटाबोलिक
सिंड्रोम के जोखिम से बचाता है। अंगूर शरीर में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करता
है। शोधों में भी यह बात साबित हो चुकी है कि जो लोग नियमित रूप से अंगूर का सेवन
करते हैं उनमें मधुमेह का खतरा काफी कम होता है। शोध के मुताबिक अंगूर जैसे फाइ
टोकैमिकल से भरपूर फल खाने से लोगों को इसका फायदा मिलता है।मधुमेह रोगियों को
अपने आहार में विटामिन, मिनरल व फाइबर युक्त फलों को शामिल
करना चाहिए। जिन फलों में कार्बोहाइड्रेट होता है उनके सेवन से शरीर में ब्लड
ग्लूकोज का स्तर ठीक रहता है।
अंगूर व मधुमेह
आधा कप अंगूर से आपको 52 कैलोरी मिलती है। अंगूर प्राकृतिक रुप से मीठा होता है इसमें किसी
तरह का शुगर नहीं होता है। मधुमेह रोगी अंगूर जैसे अन्य फल जो प्राकृतिक रुप से मीठे हो, खा सकते हैं। इससे किसी तरह का खतरा नहीं होता है। लाल अंगूर में
फाइबर भी पाया जाता है इसके अलावा एक अलग तरह का कार्बोहाइड्रेट भी पाया जाता जो
ब्लड शुगर का लेवल नहीं बढ़ता है।अंगूर में ग्लूकोज पाया जाता है जो रसायनिक
प्रकिया के जरिए शरीर द्वारा सोख लिया जाता है । इसलिए अंगूर खाने के बाद आपको
तुरंत ऊर्जा का एहसास होता है। अंगूर को सुबह सुबह खाली पेट खाना ज्यादा फायदेमंद
माना जाता है। अंगूर के सेवन से मधुमेह के अलावा आपका हृदय भी स्वस्थ रहता है साथ
ही आप ब्लड प्रेशर की समस्या से भी बच सकते हैं। मधुमेह में हृदय रोग व रक्त चाप
की समस्या बहुत ही खतरनाक साबित होसकती है।
अंगूर के अन्य फायदे
·
अंगूर दिमाग के
लिए काफी फायदेमंद होता है। अक्सर बच्चों को परीक्षा के समय उनके माता पिता खाने
के लिए अंगूर देते हैं क्योंकि इससे उनके दिमाग को रिफ्रेशमेंट मिलता है और
याद्दाशत मजबूत होती है।
·
अंगूर में कैंसर
जैसी बीमारी से लड़ने की शक्ति है। कैंसर को नियंत्रित करने के लिए अंगूर खाने की
सलाह दी जाती है।
·
अंगूर आपके हृदय
को स्वस्थ रखता है जिससे आप हृदय रोगों से दूर रहते हैं।
·
अंगूर का रस
माइग्रेन में काफी फायदेमंद है।
·
अंगूर का सेवन
गुर्दे के रोग में भी किया जाता है। अंगूर गुर्दे व लीवर से विषैले तत्व को बाहर
निकालता है।
शनिवार, 27 अक्टूबर 2012
डायबिटीज की आधुनिक चिकित्सा
डायबिटीज एक खतरनाक रोग है जो मरीज को धीरे धीरे अपनी आगोश में
लेता जाता है और अगर मरीज ने अपना शुगर लेवल कम नहीं किया तो यह रोग उसपर अपना
शिकंजा कसता जाता है और एक दिन मरीज दिल के दौरे या स्ट्रोक या लकवा या अंधेपन का
शिकार हो जाता है। इसलिए समय रहते इसका उपचार जरुरी है।
आइये जानते हैं कि इसके उपचार स्वरुप क्या क्या किया जाता है:
इसमें सबसे पहले शुगर लेवल को कम करना होता है जिसके लिए इंसुलिन दिया जाता है।
डायबिटीज को मुख्यतः तीन तरीको से नियंत्रित किया जाता है या यूँ कहिये कि इसका उपचार किया जाता है जिनमें इंसुलिन, व्यायाम एवं खान पान की मुख्य भूमिका होती है। अगर व्यायाम करने से एवं आहार विहार पर नियंत्रण रखने से भी ब्लड शुगर लेवल कम नहीं होता तो दवाइयों का सहारा लिया जाता है। अगर दवाइयां भी शुगर लेवल को कम करने में बेअसर दिखाई देने लगती हैं तो मरीज को इंसुलिन दिया जाता है।
लकिन गर्भवती स्त्रियों को अथवा स्तनपान करवाने वाली महिलाओं को अगर जेसटेस्नल डायबिटीज हो गई है तो उन्हें व्यायाम से अथवा आहार पर नियंत्रण करके या इंसुलिन थेरपी के जरिये ब्लड शुगर को कम किया जाता है। उन्हें किसी भी तरह की डायबिटीज की दवाई नहीं खिलाई जाती।
डायबिटीज के मरीज को किस तरह की दवाइयां दी जाती हैं?
सल्फोनायलुरिअस
इस तरह की दवाइयों का मुख्य काम होता है- ब्लड ग्लूकोज के स्तर को कम करना। साथ हीं साथ ये दवाइयां पैनक्रियाज को ज्यादा मात्रा में इंसुलिन निर्माण करने को उत्प्रेरित करते हैं। इस तरह डायबिटीज के मरीज के शरीर में ग्लूकोज का स्तर सामान्य होने लगता है।
प्राडीन
इस प्रकार की दवाइयां भी ब्लड शुगर कम करने के लिए प्रयोग में लाई जाती हैं। यह आमतौर पर भोजन के पूर्व लेने को कहा जाता है।
बाईगुआनाइड्स
इस प्रकार की दवाइयाँ लीवर द्वारा उत्पादित ग्लूकोज की मात्रा को कम करती है।
थाईजोलीडाइनडिओंस
इस प्रकार की दवाइयाँ मरीज के शरीर को इस लायक बनाती हैं जिससे कि मरीज का शरीर कसमें मौजूद इंसुलिन का उपयोग कर सके।
मेगलीटीनाईड्स
इस प्रकार की दवाइयाँ पैनक्रियाज को ज्यादा से ज्यादा इंसुलिन उत्पादन के लिए प्रेरित करती है।
इंसुलिन
इन्सान का सिंथेटिक इंसुलिन सिर्फ एक प्रकार का ऐसा इंसुलिन है जो अभी सिर्फ संयुक्त राज्य अमेरिका में उपलब्ध है। अतीत में इस्तेमाल किये जाने वाले पशु व्युत्पन्न के किस्मों से प्राप्त इंसुलिन की तुलना में इनसे कम एलर्जी होने संभावना रहती है। इंसुलिन के विभिन्न प्रकार उपलब्ध रहते हैं जो इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज की स्थिति क्या है और उसे किस प्रकार का मधुमेह है।
वाणिज्यिक तरीके से तैयार किये गए इंसुलिन के मिश्रण को मधुमेह पर तत्काल नियंत्रण लगाने में प्रभवकारी होता है।
इंसुलिन के इस्तेमाल करने के तरीके
इंसुलिन को अक्सर इंजेक्सन के रूप में लिया जाता है।
इसका इंजेक्सन त्वचा के ठीक नीचे लिया जाता है। इंसुलिन मुंह के जरिये लेने की बजाये इंजेक्सन द्वारा इसलिए लिया जाता है क्योंकि जब इंसुलिन मुंह के द्वारा पेट में पहुँचता है तो रक्त में मिलने के पहले हीं लीवर द्वारा यह नष्ट हो जाता है जिससे इसका फायदा मरीज को नहीं मिल पाता।
डायबिटीज में खान पान द्वारा इलाज
डायबिटीज में खान पान का भी विशेष ध्यान रखा जाता है। चीनी, घी, वसा वाले खाद्य पदार्थ न के बराबर खाए जाते हैं। फाईबरयुक्त खाद्य पदार्थ तथा प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थ खाया जाता है। हरी सब्जियों का रोजाना भरपूर मात्रा में सेवन किया जाता है।
नारियल तेल के बारे में शोधकर्ताओं ने पता लगाया है की यह डायबिटीज के मरीजों को बहुत लाभ पहुंचाता है। यह ब्लड शुगर लेवल को कम करता है; इंसुलिन के बिना हीं मरीज की कोशिकाओं तक ग्लूकोज पहुँचाता है और कोशिकाओं का पोषण करता है जिससे मधुमेह के मरीज को कमजोरी नहीं आती। नारियल तेल न सिर्फ ब्लड शुगर लेवल को कम करता है बल्कि यह मधुमेह की बीमारी को ठीक करने में भी अहम् भूमिका निभाता है। अतः दावा के साथ साथ मधुमेह के इलाज के तौर पर शुद्ध नारियल तेल का भी सेवन किया करें।
व्यायाम सबसे कारगर इलाज
मधुमेह का मरीज चाहे जितनी भी दवाइयां खाता रहे, उसे तब तक कोई खास फायदा नहीं होने वाला जब तक वह व्यायाम नहीं करता। मधुमेह के मरीज को रोजाना आधा घंटा व्यायाम करना चाहिए; इसके लिए वह चाहे जिम जाये या डांस करे या पैदल चले या कुछ और करे। व्यायाम ब्लड शुगर लेवल को कम करने में अहम भूमिका निभाता है और आपको अनेक रोगों से बचाता है।
तनाव और डायबिटीज का संबंध
भागदौड भरी जिंदगी में लगभग सभी
तनावग्रस्त दिखते हैं और तनावग्रस्त दिखना मधुमेह का सबसे बड़ा कारण है। खानपान में लापरवाही और अनियमित दिनचर्या के
अलावा तनाव में रहने वालों को मधुमेह हो सकता है। तनाव के दौरान हमारे शरीर में कुछ
ऐसे हार्मोन पैदा हो जाते हैं जो कि इंसुलिन के विपरीत कार्य करते हैं। तनाव ही
डायबिटीज का कारण बनता है। मधुमेह के शिकार लोगों में ग्लूकोज की मात्रा
अनियंत्रित हो जाती है। हालांकि, तनाव को पूरी तरह दूर करने का कोई तरीका नहीं है, लेकिन तनाव को कम किया जा सकता है।
तनाव और डायबिटीज का संबंध –
शारीरिक और मानसिक तनाव का मधुमेह
से बहुत ही गहरा संबंध है। तनाव के कारण मधुमेह हो सकता है। तनाव में खून का शुगर
लेवेल बढता है। तनाव से बनने वाले हार्मोन्स जैसे – एपीनेफ्रिन और कार्टिसोल ब्लड शुगर को बढाते हैं। अगर आपका ब्लड
शुगर स्तर कम होता है तो आपको डायबिटीज होने का खतरा कम होता है लेकिन खून में
शुगर स्तर बढने से मधुमेह होने का खतरा बढ जाता है। तनाव के कारण बच्चे भी मधुमेह
का शिकार हो रहे हैं।
तनाव के कारण –
जीवनशैली - पूरी तरीके से बदली हुई जीवनशैली तनाव का सबसे प्रमुख कारण है।
अनियमित दिनचर्या के कारण लोग अपने स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख पाते हैं जिसके
कारण कई बीमारियां शुरू हो जाती हैं। समय से न सो पाने और देर से उठने के कारण भी
तनाव होता है।
काम का दबाव - कंपटीशन की जिंदगी में हर कोई सबसे आगे निकलना चाहता है। इसके लिए
आदमी ऑफिस और बिजनेस में ज्यादा काम करता है। काम के दबाव के कारण तनाव होना लाजमी
है।
खान-पान – खाद्य-पदार्थों के रूप में फास्ट फूड का ज्यादा मात्रा में प्रयोग भी तनाव का कारण
बनता है। फास्ट फूड खाने के कारण शरीर और दिमाग को भरपूर पोषण नहीं मिल पाता है
जिसके कारण तनाव शुरू होता है।
जिम्मेदारी – पारिवारिक
जिम्मेदारी भी तनाव का प्रमुख कारण है। कई बार घर की जरूरतों को पूरा करते-करते
आदमी के ऊपर ज्यादा दबाव बढ जाता है। बच्चों की जरूरतें भी तनाव का कारण बनती हैं।
शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2012
प्रेम एक ऐसा विषय है जिस पर सबसे अधिक लिखा गया है और सेक्स या काम ऐसा विषय है जिससे प्रकृति का कोई प्राणी तो छोड़ कोई तत्व अलग नही है। हम मौखिक रुप से चाहैं जितना मना करें किन्तु शरीर की सबसे महत्वपूर्ण भूख है सेक्स और जीवन की सबसे आनन्ददायक क्रिया है सेक्स, विवाहित स्त्री पुरुषों के बीच हमारे देश में क्योंकि विवाह पूर्व प्रेम की घटनाए वहुत कम पायी जाती है इसलिए प्रेम भावना बढ़ाने का साधन भी सेक्स ही है।किन्तु जब नर या नारी कोई भी किसी गुप्त रोग से ग्रसित होता है तो दोनो के प्रेम आनन्द में वाधा पड़ जाता है।एसी अवस्था में न तो नारी संतुष्ट होतीहै और न ही पुऱुष की ही काम वासना की त्रप्ति होती है। परिणाम यह होता है कि दोनो का वैवाहिक जीवन नरक बन जाता है।अतः यह जरुरी है कि दोनो ही शारीरिक रुप से ही नही मानसिक रुप से भी स्वस्थ हों।
आज हम केवल स्त्री रोगों के बारे में चर्चा करेंगे।
स्त्री में कामांग (सेक्स संबधी अंग)- रोगों की जानकारी से पहले यदि हमें अंग विशेष के बारे में जानकारी है तभी रोग का सही उपचार संभव है अतः रोगों की जानकारी से पहले स्त्री अंग उसकी बनावट उसकी क्रिया विधि को समझ लेना आवश्यक है। स्त्री में कामांग दो प्रकार के होते हैं 1- बाह्य स्त्री कामांग- स्त्री के वाह्य कामांगों में प्रमुख अंग है योनि व भगनासा
[Image]स्त्री के वाहरी अंगो के उपांगो में सबसे पहले आता है योनि कपाट जो वड़े तथा छोटे ओष्ठों के बीच जाघों के मध्य होता है,इसके बाद कुछ अण्डाकार व कुछ अर्ध चन्द्राकार छेद होता हैजिसे भग द्वार या योनिमुख कहते हैं।योनिमुख के दोनो ओर लम्बा सा उभार होता है जिस पर बाल उगे रहते हैं।औऱ अन्दर की ओर चिकना व माँसल भाग होता है जिसे बडा ओष्ठ या libia majora कहते हैं।जिसके दोनो सिरे आपस में मिले रहते रहते हैंऔर जहाँ ये ऊपर मिलते हैं वह संगम स्थल भगांकुर या clitoris कहलाता है।यही से मुख्यतः काम भाव जाग्रत होता है।इस भगांकुर की रचना कुछ कुछ पुरुष जननेन्द्रिय जैसी है।इसमे पुरुष जननेन्द्रिय की तरह ही हड्डियाँ या नसे नही होती यह भी थोड़ी सी रगड़ पाकर या फिर स्पर्श से तन कर फूल जाती है और स्त्री में कामोत्तेजना पैदा हो जाती है।यह बड़े ओष्ठ के मिलन स्थल से लगभग 1 या 1.25 सेमी. नीचे अन्दर की ओर होता है।भगांकुर के नीचे योनिमुख के ऊपर छोटे आष्ठों के बीच में एक तिकोनी सी जगह होती है जिसे भगालिन्द या vestibulae कहते हैं।इसके बीच में योनिमुख या छिद्र होता है यही मूत्रद्वार भी खुलता है।योनि के आरम्भ में दोनो ओष्ठों के पीछे एक ग्रंथि ढकी अवस्था में रहती है जो कामभाव पैदा करने के लिए उत्तरदायी है।भगालिंद से गर्भाशय तक फैला हुआ जिसके आगे की ओर मूत्राशय व पीछे की ओर का भाग मलाशय होता है के बीच मे योनिमार्ग स्थित रहता है।इसका मुख नीचे की अपेक्षा ऊपर को अधिक फैला हुआ रहता है।ऊपर की तरफ इसमें गर्भाशय की गर्दन का योनि वाला भाग होता है।
2- आंतरिक स्त्री कामांग योनि या Vagina प्रथम अंतः जनन अंग है यह एक15 सेमा. लम्बी नाली के जैसी संरचना है जो मांसपेशियों व झिल्ली से बनी होती है तथा जो योनिमुख से गर्भाशय द्वार तक जाती है।यह नाली योनि मुख पर व नाली के अंतिम सिरे पर तंग तथा बीच में चोड़ी होती है।यह तीन परतो वाली संरचना है तथा इसकी अगली व पिछली दीवारों पर खड़ी लकीरे पायी जाती हैं।इन लकीरों के मध्य में बहुत सी छोटी -2 ऐसी श्लैश्मिक ग्रंथियाँ होती हैं जिनसे संभोग के समय विशेष प्रकार के तरल स्राव निकल कर योनि को गीला और चिकना बनाते हैं.तथा संभोग में मदद करते है।यह नाली जैसी संरचना संभोग,मासिक स्राव,व प्रसव की क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मूत्राशय और मलाशय के बीच में नीचे को मुँह किये हुये नासपाती के समान थैली जैसी एक संरचना 10×6 cm वाली पेड़ू मे पायी जाती है जिसे Uterus या गर्भाशय कहते हैं। इसका वजन लगभग 6 औंस के करीव होता है। इसके अन्दर ही गर्भ बनता है तथा यही उसका विकास होकर बच्चा विकसित होता है।गर्भाशय आठ वंधनो द्वारा अपने स्थान पर अवस्थित रहता है जिस प्रत्येक बंधन में दो तहें होती है इन्हीं तहों के बीच-2 में फैलोपियन ट्यूव,ओवरीज व गोल गोल लिगंमेट्स होता है।गर्भाशय को तीन भागों में विभाजित किया गया है। [Image]1- गर्भाशय गर्दन (Cervix Uteri or Cervical canal)
[Image] 2- गर्भाशय( Body of Uterus) 3- गर्भ गुहा(Fundus Uterai ) गर्भाशय का भीतरी भाग गर्भगुहा कहलाता है।यह त्रिकोण के आकार का होता है।यौवनावस्था में यह 6.25 सेमी. का तथा गर्भावस्था में 22.से 30 सेमी. का हो जाता है।स्त्री के गर्भाशय के दोनो ओर रंग में सफेद तथा बादाम के आकार की अण्डाशय या डिंबग्रंथि (Ovaries)नामक दो ग्रंथियाँ होती हैं ये पुरुषों मे पाये जाने बाले अण्डकोशों के समान होती हैं। स्त्री के जननागों की सक्षिप्त जानकारी हो जाने के बाद अब आप यह समझ सकते हैं कि जब इन अंगो मे कोई विकार पैदा हो जाए या इनकी क्रिया विधि गड़वड़ा जाए तभी संभोग क्रिया कष्टप्रद हो जाएगी अब स्त्रियों में होने बाले रोगों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। स्त्रियों में होने वाले सामान्य रोग योनि में खुजली हो जाना,योनि का तंग हो जाना,योनि का शिथिल या ढीली हो जाना,योनि में घाव होना,जरायु या गर्भ प्रदाह, आदि हैं।
आज हम केवल स्त्री रोगों के बारे में चर्चा करेंगे।
स्त्री में कामांग (सेक्स संबधी अंग)- रोगों की जानकारी से पहले यदि हमें अंग विशेष के बारे में जानकारी है तभी रोग का सही उपचार संभव है अतः रोगों की जानकारी से पहले स्त्री अंग उसकी बनावट उसकी क्रिया विधि को समझ लेना आवश्यक है। स्त्री में कामांग दो प्रकार के होते हैं 1- बाह्य स्त्री कामांग- स्त्री के वाह्य कामांगों में प्रमुख अंग है योनि व भगनासा
[Image]स्त्री के वाहरी अंगो के उपांगो में सबसे पहले आता है योनि कपाट जो वड़े तथा छोटे ओष्ठों के बीच जाघों के मध्य होता है,इसके बाद कुछ अण्डाकार व कुछ अर्ध चन्द्राकार छेद होता हैजिसे भग द्वार या योनिमुख कहते हैं।योनिमुख के दोनो ओर लम्बा सा उभार होता है जिस पर बाल उगे रहते हैं।औऱ अन्दर की ओर चिकना व माँसल भाग होता है जिसे बडा ओष्ठ या libia majora कहते हैं।जिसके दोनो सिरे आपस में मिले रहते रहते हैंऔर जहाँ ये ऊपर मिलते हैं वह संगम स्थल भगांकुर या clitoris कहलाता है।यही से मुख्यतः काम भाव जाग्रत होता है।इस भगांकुर की रचना कुछ कुछ पुरुष जननेन्द्रिय जैसी है।इसमे पुरुष जननेन्द्रिय की तरह ही हड्डियाँ या नसे नही होती यह भी थोड़ी सी रगड़ पाकर या फिर स्पर्श से तन कर फूल जाती है और स्त्री में कामोत्तेजना पैदा हो जाती है।यह बड़े ओष्ठ के मिलन स्थल से लगभग 1 या 1.25 सेमी. नीचे अन्दर की ओर होता है।भगांकुर के नीचे योनिमुख के ऊपर छोटे आष्ठों के बीच में एक तिकोनी सी जगह होती है जिसे भगालिन्द या vestibulae कहते हैं।इसके बीच में योनिमुख या छिद्र होता है यही मूत्रद्वार भी खुलता है।योनि के आरम्भ में दोनो ओष्ठों के पीछे एक ग्रंथि ढकी अवस्था में रहती है जो कामभाव पैदा करने के लिए उत्तरदायी है।भगालिंद से गर्भाशय तक फैला हुआ जिसके आगे की ओर मूत्राशय व पीछे की ओर का भाग मलाशय होता है के बीच मे योनिमार्ग स्थित रहता है।इसका मुख नीचे की अपेक्षा ऊपर को अधिक फैला हुआ रहता है।ऊपर की तरफ इसमें गर्भाशय की गर्दन का योनि वाला भाग होता है।
2- आंतरिक स्त्री कामांग योनि या Vagina प्रथम अंतः जनन अंग है यह एक15 सेमा. लम्बी नाली के जैसी संरचना है जो मांसपेशियों व झिल्ली से बनी होती है तथा जो योनिमुख से गर्भाशय द्वार तक जाती है।यह नाली योनि मुख पर व नाली के अंतिम सिरे पर तंग तथा बीच में चोड़ी होती है।यह तीन परतो वाली संरचना है तथा इसकी अगली व पिछली दीवारों पर खड़ी लकीरे पायी जाती हैं।इन लकीरों के मध्य में बहुत सी छोटी -2 ऐसी श्लैश्मिक ग्रंथियाँ होती हैं जिनसे संभोग के समय विशेष प्रकार के तरल स्राव निकल कर योनि को गीला और चिकना बनाते हैं.तथा संभोग में मदद करते है।यह नाली जैसी संरचना संभोग,मासिक स्राव,व प्रसव की क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मूत्राशय और मलाशय के बीच में नीचे को मुँह किये हुये नासपाती के समान थैली जैसी एक संरचना 10×6 cm वाली पेड़ू मे पायी जाती है जिसे Uterus या गर्भाशय कहते हैं। इसका वजन लगभग 6 औंस के करीव होता है। इसके अन्दर ही गर्भ बनता है तथा यही उसका विकास होकर बच्चा विकसित होता है।गर्भाशय आठ वंधनो द्वारा अपने स्थान पर अवस्थित रहता है जिस प्रत्येक बंधन में दो तहें होती है इन्हीं तहों के बीच-2 में फैलोपियन ट्यूव,ओवरीज व गोल गोल लिगंमेट्स होता है।गर्भाशय को तीन भागों में विभाजित किया गया है। [Image]1- गर्भाशय गर्दन (Cervix Uteri or Cervical canal)
[Image] 2- गर्भाशय( Body of Uterus) 3- गर्भ गुहा(Fundus Uterai ) गर्भाशय का भीतरी भाग गर्भगुहा कहलाता है।यह त्रिकोण के आकार का होता है।यौवनावस्था में यह 6.25 सेमी. का तथा गर्भावस्था में 22.से 30 सेमी. का हो जाता है।स्त्री के गर्भाशय के दोनो ओर रंग में सफेद तथा बादाम के आकार की अण्डाशय या डिंबग्रंथि (Ovaries)नामक दो ग्रंथियाँ होती हैं ये पुरुषों मे पाये जाने बाले अण्डकोशों के समान होती हैं। स्त्री के जननागों की सक्षिप्त जानकारी हो जाने के बाद अब आप यह समझ सकते हैं कि जब इन अंगो मे कोई विकार पैदा हो जाए या इनकी क्रिया विधि गड़वड़ा जाए तभी संभोग क्रिया कष्टप्रद हो जाएगी अब स्त्रियों में होने बाले रोगों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। स्त्रियों में होने वाले सामान्य रोग योनि में खुजली हो जाना,योनि का तंग हो जाना,योनि का शिथिल या ढीली हो जाना,योनि में घाव होना,जरायु या गर्भ प्रदाह, आदि हैं।
कुछ क्षणिकाएं!
नादान
बचपन में पापा कहते थे
समझ न सका तब,था बचपन,
पापाजी ने जब समझाया
समझ गया है मेरा मन,
पैसे पेड़ों पर नहीं उगते हैं/
लोकतंत्र
लोकतंत्र,जनता के लिए
जनता के द्वारा जन शासन,
नाना से माता तक आया
अब बारी पोते कि आयी
बेटे का असमय हुआ निधन/
कालाधन
बार बार प्रश्न उठता था,
कैसे बनाया काला धन,
कई दिनों से सोच रहा था
क्या कोल खदानों में रक्खा था ?
जो करवा रहे अवैध खनन/
कलयुगी रावण
लूले लंगड़े बहुत परेशां है
हो गये उनके अंग गबन,
शामिल उनके दर्द हुआ तो,
देखा जुल्मी इक रावण,
दस शीश ग्रीवा पर रख घूम रहा था,
सर्वोच्च दिखी उसकी गर्दन/
विडम्बना
समाचार पढ़ा अखबारों में,
होंगे करोड़पति लाखों कल को,
मै सोच रहा था मन ही मन,
लिख देता इक यह भी पंक्ति,
और करोड़ों होंगे निर्धन/
कांग्रेस
अंतिम साँसे बुढिया की,
छूटे प्राण तो करूँ दफ़न,
जीवन बिताया कैसों संग,
ग्रसित बीमारियों लगा ग्रहण,
हुस्न दीवाने फिर भी थामे,
बेशर्मी के ये सम्बन्ध,
मन बस इक अभिलाषा है,
छूटे साथ ओढा दूँ कफ़न/
वैज्ञानिकों ने खोजा हीरे का ग्रह
![Astronomers find diamond planet](http://images.jagran.com/images/13_10_2012-13oct12f7.jpg)
वैज्ञानिकों ने खोजा हीरे का ग्रह
वैज्ञानिकों ने ऐसे ग्रह की खोज की है, जो पृथ्वी से भी बड़ा है। इसे देखने के लिए किसी दूरबीन और खास चश्मे की जरूरत नहीं पड़ेगी।
वैज्ञानिकों के मुताबिक, यह पूरा ग्रह हीरे से बना है और हमारी धरती से लगभग दोगुने आकार का है। चट्टानों से घिरे इस ग्रह का नाम 55 कैसंरी-ई है और कर्क नक्षत्र में सूर्य जैसे दिखने वाले एक तारे का चक्कर लगता है। हैरानी की बात यह है कि चक्कर लगाने की तेज गति के कारण इसका पूरा साल सिर्फ 18 घटे का होता है।
इस ग्रह की खोज करने वाले यूएस-फ्रेंको रिसर्च टीम ने बताया कि इसका रेडियस पृथ्वी से दोगुना और द्रव्यमान आठ गुना ज्यादा है। ग्रह का तापमान अविश्वनीय रूप से ज्यादा है। सतह पर इसका तापमान 1648 सेल्सियस तक पहुंच जाता है।
चार सूर्य वाला ग्रह
![Volunteers Scientists Find Four-Sun Planet](http://images.jagran.com/images/17_10_2012-17oct12f2.jpg)
चार सूर्य वाला ग्रह
खगोल विज्ञान में रुचि रखने वाले दो वैज्ञानिकों ने एक ऐसे ग्रह की खोज की है जिसके इर्द-गिर्द एक-दो नहीं बल्कि चार सूर्य हैं।
खास बात यह है कि यह खोज नामी वैज्ञानिकों ने नहीं बल्कि अंतरिक्ष विज्ञान में रुचि रखने वाले दो शौकिया वैज्ञानिकों ने की है। इनमें से दो सूर्य ग्रह की कक्षा में हैं जबकि दो सूर्य इसका चक्कर लगा रहे हैं। नतीजतन इस ग्रह को चार सूर्य रोशन करते हैं। यह ग्रह पृथ्वी से पांच हजार प्रकाश वर्ष की दूरी पर है। अनुमान के अनुसार यह ग्रह पृथ्वी से छह गुना बड़ा है।
हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि चार सूर्य मौजूद होने के बाद भी ग्रह का गुरुत्वाकर्षण प्रभावित क्यों नहीं होता। प्लैनेटहंटर्स वेबसाइट की मदद से इस ग्रह की खोज की गई है। बाद में प्रयोगशाला के वैज्ञानिकों ने इस खोज को मुकाम तक पहुंचाया। इस ग्रह को पीएच1 नाम दिया गया है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के क्रिस लिनटॉट के अनुसार पीएच1 पर मौजूद चार सूर्य इसके गुरुत्वाकर्षण को जटिल बनाते हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह खोज कई मायनों में बेहद खास है। लिनटॉट ्रके मुताबिक तारों और ग्रहों की खोज में लगे कंप्यूटर इस ग्रह के बारे कोई जानकारी नहीं दे पाए हैं। इससे कहीं न कहीं यह संकेत मिलता है कि अभी ऐसे बहुत से ग्रह और तारें हैं जिनकी खोज की जानी बाकी है। उन्होंने कहा कि इसके लिए शौकिया वैज्ञानिकों को आगे आने की जरूरत है। प्लैनेटहंटर्स वेबसाइट ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने का शौक रखने वालों को इसे पूरा करने का मौका देती है।
http://sohankharola.blogspot.com
खगोलीय पिंड और पृथ्वी की टक्कर से बना चाद
![Celestial body formed by the collision of the earth and moon](http://images.jagran.com/images/19_10_2012-19oct12f1.jpg)
खगोलीय पिंड और पृथ्वी की टक्कर से बना चाद
हालिया हुए अध्ययन में कहा गया है कि चंद्रमा की उत्पत्ति मंगल ग्रह के आकार के एक खगोलीय पिंड और पृथ्वी के टकराने के बाद उत्पन्न भयंकर आग की लपटों के बीच से हुई है।
अपोलो अभियानों के तहत चंद्रमा से लाई गई मिट्टी और चट्टानों के अध्ययन से पता चलता है कि इनमें भारी मात्रा में जस्ता मौजूद है जिससे अरबों साल पहले चंद्रमा की उत्पत्ति के रहस्य का पता चलता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि चंद्रमा के बिना पृथ्वी पर जीवन संभव ही नहीं हो सकता था। इसका कारण यह है कि वर्तमान की तुलना में पहले यह पृथ्वी के चारों ओर बहुत करीब से परिक्त्रमा करता था। जिसके कारण यहा बहुत कम समय में ही ज्वार भाटा पैदा होते थे। इनसे समुद्र के किनारे के लवणों में काफी परिवर्तन हुए। शोधकर्ताओं के दल का नेतृत्व करने वाले वॉशिगटन विश्वविद्यालय के डॉक्टर फ्रेडरिक मोयनियर के मुताबिक इस शोध के लिए चंद्रमा के 20 नमूनों का अध्ययन किया गया।
क्या चंद्रमा पृथ्वी का ही हिस्सा है
हार्वड के वैज्ञानिकों के सिद्धात के अनुसार एक अन्य खगोलीय पिंड से पृथ्वी की जबरदस्त टक्कर के बाद जन्मा चंद्रमा दरअसल पृथ्वी का ही हिस्सा है। इसका अब सबसे अधिक प्रमाणिक आधार इसलिए मौजूद है क्योंकि पृथ्वी और चंद्रमा पर पाए जाने वाले रसायनों में खासी समानता है। साइंस पत्रिका में बुधवार को प्रकाशित शोध में कहा गया है कि पहले पृथ्वी जब और विशाल थी और दहल रही थी तब वह अपनी धुरी पर बहुत ही अधिक तेजी से घूम रही थी। एक दिन और रात तब अधिकतम दो से तीन घटे में ही पूरा हो जाता था।
इसलिए जब विशाल खगोलीय पिंड पृथ्वी से टकराया तो बहुत ही बड़ा विस्फोट हुआ और पृथ्वी का ही एक हिस्सा टूटकर धरती से अलग हो गया। वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी को मौजूदा स्वरूप इसलिए मिला क्योंकि चंद्रमा बहुत ही करीब घूमता था। पृथ्वी का वातावरण जीवन योग्य इसलिए बना क्योंकि चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल में सध कर चाद उससे धीरे-धीरे मौजूदा दूरी पर चला गया और पृथ्वी की गति और तापमान भी कम होता गया।
http://sohankharola.blogspot.com
सदस्यता लें
संदेश (Atom)