शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

एक जनाजा और एक बारात टकरा गए,


एक जनाजा और एक बारात टकरा गए,
उनको देखने वाले भी चकरा गए,
ऊपर से आवाज आई-ये कैसी विदाई है?
महबूब की डोली देखने साजन कि अर्थी भी आई है.

वो तो दिवानी थी मुझे तन्हां छोड गई,
खुद न रुकी तो अपना साया छोड गई,
दुख न सही गम इस बात का है..
आंखो से करके वादा होंठो से तोड गई.
अपने दिल की बात उनसे कह नहीं सकते,
बिन कहे भी जी नहीं सकते,
ऐ खुदा! ऐसी तकदीर बना,
कि वो खुद हम से आकर कहे कि,
हम आपके बिना जी नही सकते.

होंठ कह नही सकते जो फ़साना दिल का,
शायद नजरों से वो बात हो जाए,
इसी उम्मीद में इंतजार करते हैं रात का,
कि शायद सपनों मे ही मुलाकात हो जाए.

दिल तो तोड ही दिया आपने,
अब चिता भी जला देना,
कफ़न ना मिले तो,
ये दुपट्टा ही ओढ़ा देना,
कोई पुछे कि बिमारी क्या थी हमें,
तो नजरे झुका के मोहब्बत बता देना.

                   http://sohankharola.blogspot.com

कोई टिप्पणी नहीं: