शनिवार, 20 अक्तूबर 2012

“देखो आया ऐसा सावन, जिसमें पानी ही ना बरसा”





ग्रीष्मकाल जैसे ही बीतारूह में थोड़ी ठंडक आई,
     सोच के वर्षा की बूंदो कोफिजा में एक खुशियाली छायी,
 मैंने भी सोचा थोड़ा साअबकी खूब नहाऊँगा,
         जो मन के भीतर है सुखाउसको भी मैं भिंगाऊँगा,
                 मेरी आशाहुई निराशामन एक – एक बूंदो को तरसा,
                 “देखो आया ऐसा सावनजिसमें पानी ही ना बरसा” (१)




मौसम  बदलने से देखोफर्क बड़ा ही पड़ता है,
एक को पीछे छोड़ यहाँ पेदूजा आगे बढता है,
परिवर्तन एक सामान्य नियम हैइसका कोई तोड़ नहीं,
बदल गयी जो जीवन शैलीफिरइसपे कोई जोड़ नहीं,
आगे का जिसमें साज दिखेवो मौसम देखे हुआ है अरसा,
देखो आया ऐसा सावनजिसमें पानी ही ना बरसा” (२)
सावन के मौसम में देखोसमां अजब सा आता है,
सब दिन चुप बैठा रहता वो, “मोर” भी गीत सुनाता है,
झम – झम – झम जब वर्षा करतीधरती संगीत बजाती है,
गीली होती है मिट्टीतब अंकुर उसमें आती है,
ऐसे कई रंगीन चित्र कोमन में सोच हुआ ओझरसा,
देखो आया ऐसा सावनजिसमें पानी ही ना बरसा” (३)
वर्षा का प्रवेश द्वार यहआरंभ नहीं क्यों कर है रहा,
सोच रहा किस बात लिए अबजला – जल करता क्यूँ न धरा,
धान के पौधे पूछ रहेंक्याजल हमको मिल पायेगा,
या फिर इस इन्तजार में हीजीवन सुखा कट जाएगा,
इतनी तो उम्मीद जगा कीआएगी थोड़ी सी वर्षा,
देखो आया ऐसा सावनजिसमें पानी ही ना बरसा” (४)
महत्व बड़ा है सावन काफिरभादो को क्यूँ श्र्ये मिले,
जल जिसमें बरसे उसमें हीजीवन की उम्मीद दिखे,
ऋतुएँ भी अब सही समय पेदेखो धोखा दे जाती हैं,
आना होता है जब उनकोवो पीछे  देखो आती हैं,
भगवान भी खेले आँख – मिचोलीइंसान करे क्या बोलो वर्षा,
देखो आया ऐसा सावनजिसमें पानी ही ना बरसा” (५)





                                                  


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