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तुझे जिब्हा करने की ख़ुशी और मुझे मरने का शौक है, मेरी भी मर्जी वही जो मेरे सैयाद की है ........ । इन पंक्तियों का हर लब्ज उस देशभक्त की वतन पर मर मिटने की ख्वाइश जताता है , जिसने जंग -ऐ- आजादी में हंसी ख़ुशी फांसी का फन्दा चूम लिया ।
वतन परस्ती की यह तहरीर भगत सिंह की उस डायरी का हिस्सा है , जो उन्होंने लाहोर जेल में लिखी थी । आँखों में आजादी के सपने लेकर सहीद -ऐ -आजम ने जेल में जो कठिन दिन गुजारे , उसका हर लम्हा इस डायरी में कैद किया । चार सौ चार पन्नो वाली यह मूल डायरी भगत सिंह के वंशज यादबिंदर सिंह के पास महफूज है । सिंह के परिवार ने इस एतिहासिक बिरासत को सालों से संजोकर रखा है ।
दिल्ली के नेहरू मेमोरिअल मुजियम में इस डायरी की एक प्रति भी उपलब्द है ।
द्वारा
सोहन खरोला
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