गुरुवार, 25 अक्तूबर 2012


स्विस बैंक, सफ़ेदपोश नेता और, काला धन

अभी हाल ही में The New Indian Express में प्रकाशित गुरुमूर्ति जी का लेख (Who will probe first family's billions?) पढ़ा.

इस लेख में जो भी पढ़ने को मिला तो एक पल को विस्मित हो गया था..... पर अब जैसा कि रोज़-रोज़ ऐसे वाकिये सुनने की आदत हो गयी है सो अपने को सँभाल लिया.

सोचने की बात है कि (बातें तो और भी हैं पर कोई सोचता ही नहीं):

१- काले धन पर जब दुनिया के बहुत सारे देश मुहिम छेड़े हुए हैं तब भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी बिना एक शब्द बोले G-20 देशों की बैठक से वापिस आ गये. इसका उत्तर अति-शिक्षित मनमोहन सिंह जी के पास नहीं है.

२- एक सौ करोड़ से अधिक की जनसंख्या वाले देश का प्रधानमंत्री Nuclear Deal पर हस्ताक्षर करने के छः माह बाद ये खुलासा करे कि यदि ये deal नहीं होती तो वह त्यागपत्र दे देता. ये कथन क्या प्रकट कर रहा है?

और मुद्दों पर न जाते हुए केवल इन्हीं दो उदाहरणों से एक बात साफ़ हो जाती है कि सत्ता की कुंजी उनके हाथ में नहीं है. और वह एक सहायक की भाँति वही बोलते और करते हैं जो उनको बोला जाता है... अर्थात कठपुतली प्रधानमंत्री. इसके विपरीत यदि वो सारे निर्णय स्व-विवेक से लेते हैं तो देश हित से जुड़े उन दो मुद्दों पर जो पूर्णरूप से स्पष्ट थे ऐसा राष्ट्रघाती निर्णय कैसे ले सकते हैं.

जैसा कि स्पष्ट है कि दोनों मुद्दे पैसे से जुड़े हैं पहला रिश्वत का काला धन एकत्र करने के संदर्भ में और दूसरा किसी भी deal में मिलने वाली रिश्वत के संदर्भ में. आप बतायें कि क्या ये घोटाले नहीं हैं? वो बात अलग है कि ये सब घोटाले वो पार्टीहित में कर रहे हैं. प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन जी एक नयी गाथा लिखी है. अपनी गलतियां और कमजोरियां छिपाने के लिये वो अपना RESUME पढ़ कर सुनाने लगते हैं.

अब फ़िर से गुरुमूर्ती जी के लेख पर आते हैं. पत्रिका के हवाले से उन्होंने तीन बातें सामने लाईं हैं:

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