शनिवार, 24 नवंबर 2012

मन की वेदना





















ये व्याकुल वकुल के फूलों पर भ्रमर मरता पथ घूम-घूम कर

आसमान में ये कैसी सुगबुगाहट वायू मे भी एक फुसफुसाहट

ये वनांचल भी पुलकित होकर झूमे ये भ्रमर भी पथ भूलकर घूमे

ये मन वेदना सुमधुर होकर खुश है आज   में बहकर

वंशी में है तानपुरी सी माया ये कौन है जो मेरे मन को चुराया

ये निखिल विश्व भी मरे घूम-घूम कर और मै मरुँ विरह सागर के तट पर 


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