मित्रतादार्श स्थापित कर !
मन के तम को दूर कर
गम को मन से परे कर
हृदय से हृदय मिला ले
आज मित्रता के गीत गा ले !
अग्निशापित हृदय से
राग-द्वेष के कलंक से
खुद को तू स्वतंत्र कर
मित्रतादार्श स्थापित कर !
भेद मन का मिटा दे
देह-नश्वर जान ले
अश्रु बूँद न व्यर्थ कर
मित्रता दृढ़ता से धर !
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