वफा की चाह कैसी दिल में लिये फिरते हो
अब तो चाँद भी फिजां को छोड़ देता
है
कहाँ की दोस्ती है कौन निभाने
वाला
बुझा के प्यास वो घड़ा फोड़ देता
है
कसूर किसका कहें कौन गुनहगार
यहाँ
शाम को साया भी छोड़ देता है
इशारे पर उसके ये सांस चलती है
एक लम्हे में हर रुख को मोड देता
है
कैसे जज्बात किसकी आरजू में हो
मरते
प्यार के बुत को ये जमाना तोड़
देता है ………
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