रविवार, 23 दिसंबर 2012

सब तो है मेरे पास !

न जाने ये कैसी उलझन है, 


न जाने ये कैसी कश्मकश है, 


न जाने कौन सा ये गम है, 


जिसके सामने हजारो खुशियाँ फीकी पड़ जा रही है।


जवाब शायद मैं जनता हूँ। 


पर फिर भी नजाने क्यों, 


मै अपने आप से इतने सवाल कर रहा हूँ।


ये तेरी कमी का एहसास है, जो बेचैनी बन कर मेरे सिने में उतरती जा 

रही है।


सब तो है मेरे पास ! 


पर फिर भी क्यों मै अपने आपको इतना तनहा महसूस कर रहा हूँ।


आज चलते चलते मेरे कदम उसी बताशे के ठेले पर जा रुके।


वो टिक्की और बताशे की भीनी सी खुशबू में छिपी तेरी याद ने मुझे बाँध 

सा दिया था।


जब बतासे वाले ने पत्तल मेरी ओंर बढाया,


तो उस कोरे पत्तल में तेरी याद को जिन्दा पाया।


मन में बस यही ख़याल आया,


अगर तुम साथ होती तो उस पत्तल को अपनी उँगलियों से पोंछ कर मुझे 

देती।


अगर तुम साथ होती तो कहती की, 'भईया बताशे में प्याज लगा देना'। 


अगर तुम साथ होती तो कहती की , 'अरे भईया मटर थोडा कम डालो'। 


इन्ही यादो में ही खोया था कि अचानक खांसी आ गई, 


अनायास आई उस खांसी ने भी तेरी कमी का एहसास करा दिया ।


अगर तुम होती तो अपने हाथो से मेरी पीठ को सहलाने लगती । 


गले में चुभती उस खांसी कि तरह ये अकेला पन भी मेरी जिन्दगी में 

चुभ सा रहा था। 


आँखों में तेरी याद आंसू बन कर छलक उठh। 


उन बताशो कि तरह मेरी जिन्दगी भी बेस्वाद सी 

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