सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

कहाँ से लाऊं ओ पल


रात तुम्हारी बाँहों में कटे ,सुबह हलकी हलकी लगे |
दिन तुम्हारे ख्यालों में गुजरे तो रात हलकी हलकी लगे ||
जो तुम्हे देखा तो सांसे गई थम ,सारी सारी रात सोये ना हम |
तुम साथ होकर भी साथ नहीं होती ,अब तो रात होकर भी रात नहीं होती ||
दिन गुजरा तन्हाई में ,रात गुजरी रुशवाही में |
कहाँ से लाऊं ओ पल ओ सुकून,जो कभी तुमने मुझे दिए ||
पर सोचा जो दिया ओ उधार समझूँ ,आएगा एक दिन जब सूत समेत वापस करूँ ||

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