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रविवार, 18 सितंबर 2011

बड़ा नटखट है रे / भजन - Kavita Kosh

बड़ा नटखट है रे / भजन - Kavita Kosh
प्रस्तुतकर्ता Sohankharolarksh पर 3:35 am
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1 टिप्पणी:

Sohankharolarksh ने कहा…

भजनों की लहरी में मैं मगन हो गया

20 सितंबर 2011 को 9:45 am बजे

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भारत का इतिहास

भारत का इतिहास जितने भी लोग महाभारत को काल्पनिक बताते हैं.... उनके मुंह पर पर एक जोरदार तमाचा है आज का यह पोस्ट...! महाभारत के बाद से आधुनिक काल तक के सभी राजाओं का विवरण क्रमवार तरीके से नीचे प्रस्तुत किया जा रहा है...! आपको यह जानकर एक बहुत ही आश्चर्य मिश्रित ख़ुशी होगी कि महाभारत युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठिर की 30 पीढ़ियों ने 1770 वर्ष 11 माह 10 दिन तक राज्य किया था..... जिसका पूरा विवरण इस प्रकार है : क्र................... शासक का नाम.......... वर्ष....माह.. दिन 1. राजा युधिष्ठिर (Raja Yudhisthir)..... 36.... 08.... 25 2 राजा परीक्षित (Raja Parikshit)........ 60.... 00..... 00 3 राजा जनमेजय (Raja Janmejay).... 84.... 07...... 23 4 अश्वमेध (Ashwamedh )................. 82.....08..... 22 5 द्वैतीयरम (Dwateeyram )............... 88.... 02......08 6 क्षत्रमाल (Kshatramal)................... 81.... 11..... 27 7 चित्ररथ (Chitrarath)...................... 75......03.....18 8 दुष्टशैल्य (Dushtashailya)............... 75.....10.......24 9 राजा उग्रसेन (Raja Ugrasain)......... 78.....07.......21 10 राजा शूरसेन (Raja Shoorsain).......78....07........21 11 भुवनपति (Bhuwanpati)................69....05.......05 12 रणजीत (Ranjeet).........................65....10......04 13 श्रक्षक (Shrakshak).......................64.....07......04 14 सुखदेव (Sukhdev)........................62....00.......24 15 नरहरिदेव (Narharidev).................51.....10.......02 16 शुचिरथ (Suchirath).....................42......11.......02 17 शूरसेन द्वितीय (Shoorsain II)........58.....10.......08 18 पर्वतसेन (Parvatsain )..................55.....08.......10 19 मेधावी (Medhawi)........................52.....10......10 20 सोनचीर (Soncheer).....................50.....08.......21 21 भीमदेव (Bheemdev)....................47......09.......20 22 नरहिरदेव द्वितीय (Nraharidev II)...45.....11.......23 23 पूरनमाल (Pooranmal)..................44.....08.......07 24 कर्दवी (Kardavi)...........................44.....10........08 25 अलामामिक (Alamamik)...............50....11........08 26 उदयपाल (Udaipal).......................38....09........00 27 दुवानमल (Duwanmal)..................40....10.......26 28 दामात (Damaat)..........................32....00.......00 29 भीमपाल (Bheempal)...................58....05........08 30 क्षेमक (Kshemak)........................48....11........21 इसके बाद ....क्षेमक के प्रधानमन्त्री विश्व ने क्षेमक का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 14 पीढ़ियों ने 500 वर्ष 3 माह 17 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है। क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन 1 विश्व (Vishwa)......................... 17 3 29 2 पुरसेनी (Purseni)..................... 42 8 21 3 वीरसेनी (Veerseni).................. 52 10 07 4 अंगशायी (Anangshayi)........... 47 08 23 5 हरिजित (Harijit).................... 35 09 17 6 परमसेनी (Paramseni)............. 44 02 23 7 सुखपाताल (Sukhpatal)......... 30 02 21 8 काद्रुत (Kadrut)................... 42 09 24 9 सज्ज (Sajj)........................ 32 02 14 10 आम्रचूड़ (Amarchud)......... 27 03 16 11 अमिपाल (Amipal) .............22 11 25 12 दशरथ (Dashrath)............... 25 04 12 13 वीरसाल (Veersaal)...............31 08 11 14 वीरसालसेन (Veersaalsen).......47 0 14 इसके उपरांत...राजा वीरसालसेन के प्रधानमन्त्री वीरमाह ने वीरसालसेन का वध करके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 445 वर्ष 5 माह 3 दिन तक राज्य किया जिसका विरवरण नीचे दिया जा रहा है। क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन 1 राजा वीरमाह (Raja Veermaha)......... 35 10 8 2 अजितसिंह (Ajitsingh)...................... 27 7 19 3 सर्वदत्त (Sarvadatta)..........................28 3 10 4 भुवनपति (Bhuwanpati)...................15 4 10 5 वीरसेन (Veersen)............................21 2 13 6 महिपाल (Mahipal)............................40 8 7 7 शत्रुशाल (Shatrushaal).....................26 4 3 8 संघराज (Sanghraj)........................17 2 10 9 तेजपाल (Tejpal).........................28 11 10 10 मानिकचंद (Manikchand)............37 7 21 11 कामसेनी (Kamseni)..................42 5 10 12 शत्रुमर्दन (Shatrumardan)..........8 11 13 13 जीवनलोक (Jeevanlok).............28 9 17 14 हरिराव (Harirao)......................26 10 29 15 वीरसेन द्वितीय (Veersen II)........35 2 20 16 आदित्यकेतु (Adityaketu)..........23 11 13 ततपश्चात् प्रयाग के राजा धनधर ने आदित्यकेतु का वध करके उसके राज्य को अपने अधिकार में कर लिया और उसकी 9 पीढ़ी ने 374 वर्ष 11 माह 26 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण इस प्रकार है .. क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन 1 राजा धनधर (Raja Dhandhar)...........23 11 13 2 महर्षि (Maharshi)...............................41 2 29 3 संरछि (Sanrachhi)............................50 10 19 4 महायुध (Mahayudha).........................30 3 8 5 दुर्नाथ (Durnath)...............................28 5 25 6 जीवनराज (Jeevanraj).......................45 2 5 7 रुद्रसेन (Rudrasen)..........................47 4 28 8 आरिलक (Aarilak)..........................52 10 8 9 राजपाल (Rajpal)..............................36 0 0 उसके बाद ...सामन्त महानपाल ने राजपाल का वध करके 14 वर्ष तक राज्य किया। अवन्तिका (वर्तमान उज्जैन) के विक्रमादित्य ने महानपाल का वध करके 93 वर्ष तक राज्य किया। विक्रमादित्य का वध समुद्रपाल ने किया और उसकी 16 पीढ़ियों ने 372 वर्ष 4 माह 27 दिन तक राज्य किया ! जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है। क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन 1 समुद्रपाल (Samudrapal).............54 2 20 2 चन्द्रपाल (Chandrapal)................36 5 4 3 सहपाल (Sahaypal)...................11 4 11 4 देवपाल (Devpal).....................27 1 28 5 नरसिंहपाल (Narsighpal).........18 0 20 6 सामपाल (Sampal)...............27 1 17 7 रघुपाल (Raghupal)...........22 3 25 8 गोविन्दपाल (Govindpal)........27 1 17 9 अमृतपाल (Amratpal).........36 10 13 10 बालिपाल (Balipal).........12 5 27 11 महिपाल (Mahipal)...........13 8 4 12 हरिपाल (Haripal)..........14 8 4 13 सीसपाल (Seespal).......11 10 13 14 मदनपाल (Madanpal)......17 10 19 15 कर्मपाल (Karmpal)........16 2 2 16 विक्रमपाल (Vikrampal).....24 11 13 टिप : कुछ ग्रंथों में सीसपाल के स्थान पर भीमपाल का उल्लेख मिलता है, सम्भव है कि उसके दो नाम रहे हों। इसके उपरांत .....विक्रमपाल ने पश्चिम में स्थित राजा मालकचन्द बोहरा के राज्य पर आक्रमण कर दिया जिसमे मालकचन्द बोहरा की विजय हुई और विक्रमपाल मारा गया। मालकचन्द बोहरा की 10 पीढ़ियों ने 191 वर्ष 1 माह 16 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है। क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन 1 मालकचन्द (Malukhchand) 54 2 10 2 विक्रमचन्द (Vikramchand) 12 7 12 3 मानकचन्द (Manakchand) 10 0 5 4 रामचन्द (Ramchand) 13 11 8 5 हरिचंद (Harichand) 14 9 24 6 कल्याणचन्द (Kalyanchand) 10 5 4 7 भीमचन्द (Bhimchand) 16 2 9 8 लोवचन्द (Lovchand) 26 3 22 9 गोविन्दचन्द (Govindchand) 31 7 12 10 रानी पद्मावती (Rani Padmavati) 1 0 0 रानी पद्मावती गोविन्दचन्द की पत्नी थीं। कोई सन्तान न होने के कारण पद्मावती ने हरिप्रेम वैरागी को सिंहासनारूढ़ किया जिसकी पीढ़ियों ने 50 वर्ष 0 माह 12 दिन तक राज्य किया ! जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है। क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन 1 हरिप्रेम (Hariprem) 7 5 16 2 गोविन्दप्रेम (Govindprem) 20 2 8 3 गोपालप्रेम (Gopalprem) 15 7 28 4 महाबाहु (Mahabahu) 6 8 29 इसके बाद.......राजा महाबाहु ने सन्यास ले लिया । इस पर बंगाल के अधिसेन ने उसके राज्य पर आक्रमण कर अधिकार जमा लिया। अधिसेन की 12 पीढ़ियों ने 152 वर्ष 11 माह 2 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है। क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन 1 अधिसेन (Adhisen) 18 5 21 2 विल्वसेन (Vilavalsen) 12 4 2 3 केशवसेन (Keshavsen) 15 7 12 4 माधवसेन (Madhavsen) 12 4 2 5 मयूरसेन (Mayursen) 20 11 27 6 भीमसेन (Bhimsen) 5 10 9 7 कल्याणसेन (Kalyansen) 4 8 21 8 हरिसेन (Harisen) 12 0 25 9 क्षेमसेन (Kshemsen) 8 11 15 10 नारायणसेन (Narayansen) 2 2 29 11 लक्ष्मीसेन (Lakshmisen) 26 10 0 12 दामोदरसेन (Damodarsen) 11 5 19 लेकिन जब ....दामोदरसेन ने उमराव दीपसिंह को प्रताड़ित किया तो दीपसिंह ने सेना की सहायता से दामोदरसेन का वध करके राज्य पर अधिकार कर लिया तथा उसकी 6 पीढ़ियों ने 107 वर्ष 6 माह 22 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है। क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन 1 दीपसिंह (Deepsingh) 17 1 26 2 राजसिंह (Rajsingh) 14 5 0 3 रणसिंह (Ransingh) 9 8 11 4 नरसिंह (Narsingh) 45 0 15 5 हरिसिंह (Harisingh) 13 2 29 6 जीवनसिंह (Jeevansingh) 8 0 1 पृथ्वीराज चौहान ने जीवनसिंह पर आक्रमण करके तथा उसका वध करके राज्य पर अधिकार प्राप्त कर लिया। पृथ्वीराज चौहान की 5 पीढ़ियों ने 86 वर्ष 0 माह 20 दिन तक राज्य किया जिसका विवरण नीचे दिया जा रहा है। क्र. शासक का नाम वर्ष माह दिन 1 पृथ्वीराज (Prathviraj) 12 2 19 2 अभयपाल (Abhayapal) 14 5 17 3 दुर्जनपाल (Durjanpal) 11 4 14 4 उदयपाल (Udayapal) 11 7 3 5 यशपाल (Yashpal) 36 4 27 विक्रम संवत 1249 (1193 AD) में मोहम्मद गोरी ने यशपाल पर आक्रमण कर उसे प्रयाग के कारागार में डाल दिया और उसके राज्य को अधिकार में ले लिया।

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महाभारत

  • महाभारत को पांचवां वेद कहा गया है। यह भारत की गाथा है। इस ग्रंथ में तत्कालीन भारत (आर्यावर्त) का समग्र इतिहास वर्णित है। अपने आदर्श पात्राें के सहारे यह हमारे देश के जन-जीवन को प्रभावित करता रहा है। इसमें सैकड़ों पात्रों, स्थानों, घटनाओं तथा विचित्रताओं व विडंबनाओं का वर्णन है। महाभारत में कई घटना, संबंध और ज्ञान-विज्ञान के रहस्य छिपे हुए हैं। महाभारत का हर पात्र जीवंत है, चाहे वह कौरव, पांडव, कर्ण और कृष्ण हो या धृष्टद्युम्न, शल्य, शिखंडी और कृपाचार्य हो। महाभारत सिर्फ योद्धाओं की गाथाओं तक सीमित नहीं है। महाभारत से जुड़े शाप, वचन और आशीर्वाद में भी रहस्य छिपे हैं। उस समय मौजूद थे परमाणु अस्त्र मोहनजोदड़ो में कुछ ऐसे कंकाल मिले थे जिसमें रेडिएशन का असर था। महाभारत में सौप्तिक पर्व के अध्याय 13 से 15 तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिए गए हैं। हिंदू इतिहास के जानकारों के मुताबिक 3 नवंबर 5561 ईसापूर्व छोड़ा हुआ ब्रह्मास्त्र परमाणु बम ही था? 18 का अंक का जादू कहते हैं कि महाभारत युद्ध में 18 संख्‍या का बहुत महत्व है। महाभारत की पुस्तक में 18 अध्याय हैं। कृष्ण ने कुल 18 दिन तक अर्जुन को ज्ञान दिया। गीता में भी 18 अध्याय हैं।18 दिन तक ही युद्ध चला। कौरवों और पांडवों की सेना भी कुल 18 अक्षोहिणी सेना थी जिनमें कौरवों की 11 और पांडवों की 7 अक्षोहिणी सेना थी। इस युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी 18 थे। इस युद्ध में कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। सवाल यह उठता है कि सब कुछ 18 की संख्‍या में ही क्यों होता गया? कौरवों का जन्म एक रहस्य कौरवों को कौन नहीं जानता। धृतराष्ट्र और गांधारी के 99 पुत्र और एक पुत्री थीं जिन्हें कौरव कहा जाता था। कुरु वंश के होने के कारण ये कौरव कहलाए। सभी कौरवों में दुर्योधन सबसे बड़ा था। गांधारी जब गर्भवती थी, तब धृतराष्ट्र ने एक दासी के साथ सहवास किया था जिसके चलते युयुत्सु नामक पुत्र का जन्म हुआ। इस तरह कौरव सौ हो गए। गांधारी ने वेदव्यास से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर लिया। गर्भ धारण के पश्चात भी दो वर्ष व्यतीत हो गए, किंतु गांधारी काे कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हुई। इस पर क्रोधवश गांधारी ने अपने पेट पर जोर से मुक्के का प्रहार किया जिससे उसका गर्भ गिर गया। वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल ही जान लिया। वे गांधारी के पास आकर बोले- 'गांधारी! तूने बहुत गलत किया। मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र ही सौ कुंड तैयार करवाओ और उनमें घृत (घी) भरवा दो।'वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांस पिण्ड पर अभिमंत्रित जल छिड़का जिससे उस पिण्ड के अंगूठे के पोरुए के बराबर सौ टुकड़े हो गए। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गांधारी के बनवाए हुए सौ कुंडों में रखवा दिया और उन कुंडों को दो वर्ष पश्चात खोलने का आदेश देकर अपने आश्रम चले गए। दो वर्ष बाद सबसे पहले कुंड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई। फिर उन कुंडों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं दु:शला नामक एक कन्या का जन्म हुआ। महान योद्धा बर्बरीक बर्बरीक महान पांडव भीम के पुत्र घटोत्कच और नागकन्या अहिलवती के पुत्र थे। कहीं-कहीं पर मुर दैत्य की पुत्री 'कामकंटकटा' के उदर से भी इनके जन्म होने की बात कही गई है। महाभारत का युद्ध जब तय हो गया तो बर्बरीक ने भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा व्यक्त की और मां को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया। बर्बरीक अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरुक्षेत्र की रणभूमि की ओर अग्रसर हुए। बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरव और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। यह जानकर भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण के वेश में उनके सामने उपस्थित होकर उनसे दान में छलपूर्वक उनका शीश मांग लिया। बर्बरीक ने कृष्ण से प्रार्थना की कि वे अंत तक युद्ध देखना चाहते हैं, तब कृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन मास की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया। भगवान ने उस शीश को अमृत से सींचकर सबसे ऊंची जगह पर रख दिया ताकि वे महाभारत युद्ध देख सकें। उनका सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर रख दिया गया, जहां से बर्बरीक संपूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे। राशियां नहीं थीं ज्योतिष का आधार महाभारत के दौर में राशियां नहीं हुआ करती थीं। ज्योतिष 27 नक्षत्रों पर आधारित था, न कि 12 राशियों पर। नक्षत्रों में पहले स्थान पर रोहिणी था, न कि अश्विनी। जैसे-जैसे समय गुजरा, विभिन्न सभ्यताओं ने ज्योतिष में प्रयोग किए और चंद्रमा और सूर्य के आधार पर राशियां बनाईं और लोगों का भविष्य बताना शुरू किया, जबकि वेद और महाभारत में इस तरह की विद्या का कोई उल्लेख नहीं मिलता जिससे कि यह पता चले कि ग्रह नक्षत्र व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करते हैं। विदेशी भी शामिल हुए थे लड़ाई में महाभारत के युद्ध में विदेशी भी शामिल हुए थे। इस आधार पर यह माना जाता है कि महाभारत प्रथम विश्व युद्ध था। 28वें वेदव्यास ने लिखी महाभारत ज्यादातर लोग यह जानते हैं कि महाभारत को वेदव्यास ने लिखा है लेकिन यह अधूरा सच है। वेदव्यास कोई नाम नहीं, बल्कि एक उपाधि थी, जो वेदों का ज्ञान रखने वालाें काे दी जाती थी। कृष्णद्वैपायन से पहले 27 वेदव्यास हो चुके थे, जबकि वे खुद 28वें वेदव्यास थे। उनका नाम कृष्णद्वैपायन इसलिए रखा गया, क्योंकि उनका रंग सांवला (कृष्ण) था और वे एक द्वीप पर जन्मे थे। तीन चरणों में लिखी महाभारत वेदव्यास की महाभारत तीन चरणों में लिखी गई। पहले चरण में 8,800 श्लोक, दूसरे चरण में 24 हजार और तीसरे चरण में एक लाख श्लोक लिखे गए। वेदव्यास की महाभारत के अलावा भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पुणे की संस्कृत महाभारत सबसे प्रामाणिक मानी जाती है। अंग्रेजी में संपूर्ण महाभारत दो बार अनुदित की गई थी। पहला अनुवाद 1883-1896 के बीच किसारी मोहन गांगुली ने किया था और दूसरा मनमंथनाथ दत्त ने 1895 से 1905 के बीच। 100 साल बाद डॉ. देबरॉय तीसरी बार संपूर्ण महाभारत का अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे हैं। - See more at: http://naidunia.jagran.com/spiritual/kehte-hain-unsolved-mysteries-of-the-mahabharata-87624#sthash.gwAtzOr0.dpuf

महाभारत

  • महाभारत को पांचवां वेद कहा गया है। यह भारत की गाथा है। इस ग्रंथ में तत्कालीन भारत (आर्यावर्त) का समग्र इतिहास वर्णित है। अपने आदर्श पात्राें के सहारे यह हमारे देश के जन-जीवन को प्रभावित करता रहा है। इसमें सैकड़ों पात्रों, स्थानों, घटनाओं तथा विचित्रताओं व विडंबनाओं का वर्णन है। महाभारत में कई घटना, संबंध और ज्ञान-विज्ञान के रहस्य छिपे हुए हैं। महाभारत का हर पात्र जीवंत है, चाहे वह कौरव, पांडव, कर्ण और कृष्ण हो या धृष्टद्युम्न, शल्य, शिखंडी और कृपाचार्य हो। महाभारत सिर्फ योद्धाओं की गाथाओं तक सीमित नहीं है। महाभारत से जुड़े शाप, वचन और आशीर्वाद में भी रहस्य छिपे हैं। उस समय मौजूद थे परमाणु अस्त्र मोहनजोदड़ो में कुछ ऐसे कंकाल मिले थे जिसमें रेडिएशन का असर था। महाभारत में सौप्तिक पर्व के अध्याय 13 से 15 तक ब्रह्मास्त्र के परिणाम दिए गए हैं। हिंदू इतिहास के जानकारों के मुताबिक 3 नवंबर 5561 ईसापूर्व छोड़ा हुआ ब्रह्मास्त्र परमाणु बम ही था? 18 का अंक का जादू कहते हैं कि महाभारत युद्ध में 18 संख्‍या का बहुत महत्व है। महाभारत की पुस्तक में 18 अध्याय हैं। कृष्ण ने कुल 18 दिन तक अर्जुन को ज्ञान दिया। गीता में भी 18 अध्याय हैं।18 दिन तक ही युद्ध चला। कौरवों और पांडवों की सेना भी कुल 18 अक्षोहिणी सेना थी जिनमें कौरवों की 11 और पांडवों की 7 अक्षोहिणी सेना थी। इस युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी 18 थे। इस युद्ध में कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। सवाल यह उठता है कि सब कुछ 18 की संख्‍या में ही क्यों होता गया? कौरवों का जन्म एक रहस्य कौरवों को कौन नहीं जानता। धृतराष्ट्र और गांधारी के 99 पुत्र और एक पुत्री थीं जिन्हें कौरव कहा जाता था। कुरु वंश के होने के कारण ये कौरव कहलाए। सभी कौरवों में दुर्योधन सबसे बड़ा था। गांधारी जब गर्भवती थी, तब धृतराष्ट्र ने एक दासी के साथ सहवास किया था जिसके चलते युयुत्सु नामक पुत्र का जन्म हुआ। इस तरह कौरव सौ हो गए। गांधारी ने वेदव्यास से पुत्रवती होने का वरदान प्राप्त कर लिया। गर्भ धारण के पश्चात भी दो वर्ष व्यतीत हो गए, किंतु गांधारी काे कोई भी संतान उत्पन्न नहीं हुई। इस पर क्रोधवश गांधारी ने अपने पेट पर जोर से मुक्के का प्रहार किया जिससे उसका गर्भ गिर गया। वेदव्यास ने इस घटना को तत्काल ही जान लिया। वे गांधारी के पास आकर बोले- 'गांधारी! तूने बहुत गलत किया। मेरा दिया हुआ वर कभी मिथ्या नहीं जाता। अब तुम शीघ्र ही सौ कुंड तैयार करवाओ और उनमें घृत (घी) भरवा दो।'वेदव्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांस पिण्ड पर अभिमंत्रित जल छिड़का जिससे उस पिण्ड के अंगूठे के पोरुए के बराबर सौ टुकड़े हो गए। वेदव्यास ने उन टुकड़ों को गांधारी के बनवाए हुए सौ कुंडों में रखवा दिया और उन कुंडों को दो वर्ष पश्चात खोलने का आदेश देकर अपने आश्रम चले गए। दो वर्ष बाद सबसे पहले कुंड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई। फिर उन कुंडों से धृतराष्ट्र के शेष 99 पुत्र एवं दु:शला नामक एक कन्या का जन्म हुआ। महान योद्धा बर्बरीक बर्बरीक महान पांडव भीम के पुत्र घटोत्कच और नागकन्या अहिलवती के पुत्र थे। कहीं-कहीं पर मुर दैत्य की पुत्री 'कामकंटकटा' के उदर से भी इनके जन्म होने की बात कही गई है। महाभारत का युद्ध जब तय हो गया तो बर्बरीक ने भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा व्यक्त की और मां को हारे हुए पक्ष का साथ देने का वचन दिया। बर्बरीक अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ कुरुक्षेत्र की रणभूमि की ओर अग्रसर हुए। बर्बरीक के लिए तीन बाण ही काफी थे जिसके बल पर वे कौरव और पांडवों की पूरी सेना को समाप्त कर सकते थे। यह जानकर भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण के वेश में उनके सामने उपस्थित होकर उनसे दान में छलपूर्वक उनका शीश मांग लिया। बर्बरीक ने कृष्ण से प्रार्थना की कि वे अंत तक युद्ध देखना चाहते हैं, तब कृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। फाल्गुन मास की द्वादशी को उन्होंने अपने शीश का दान दिया। भगवान ने उस शीश को अमृत से सींचकर सबसे ऊंची जगह पर रख दिया ताकि वे महाभारत युद्ध देख सकें। उनका सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर रख दिया गया, जहां से बर्बरीक संपूर्ण युद्ध का जायजा ले सकते थे। राशियां नहीं थीं ज्योतिष का आधार महाभारत के दौर में राशियां नहीं हुआ करती थीं। ज्योतिष 27 नक्षत्रों पर आधारित था, न कि 12 राशियों पर। नक्षत्रों में पहले स्थान पर रोहिणी था, न कि अश्विनी। जैसे-जैसे समय गुजरा, विभिन्न सभ्यताओं ने ज्योतिष में प्रयोग किए और चंद्रमा और सूर्य के आधार पर राशियां बनाईं और लोगों का भविष्य बताना शुरू किया, जबकि वेद और महाभारत में इस तरह की विद्या का कोई उल्लेख नहीं मिलता जिससे कि यह पता चले कि ग्रह नक्षत्र व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करते हैं। विदेशी भी शामिल हुए थे लड़ाई में महाभारत के युद्ध में विदेशी भी शामिल हुए थे। इस आधार पर यह माना जाता है कि महाभारत प्रथम विश्व युद्ध था। 28वें वेदव्यास ने लिखी महाभारत ज्यादातर लोग यह जानते हैं कि महाभारत को वेदव्यास ने लिखा है लेकिन यह अधूरा सच है। वेदव्यास कोई नाम नहीं, बल्कि एक उपाधि थी, जो वेदों का ज्ञान रखने वालाें काे दी जाती थी। कृष्णद्वैपायन से पहले 27 वेदव्यास हो चुके थे, जबकि वे खुद 28वें वेदव्यास थे। उनका नाम कृष्णद्वैपायन इसलिए रखा गया, क्योंकि उनका रंग सांवला (कृष्ण) था और वे एक द्वीप पर जन्मे थे। तीन चरणों में लिखी महाभारत वेदव्यास की महाभारत तीन चरणों में लिखी गई। पहले चरण में 8,800 श्लोक, दूसरे चरण में 24 हजार और तीसरे चरण में एक लाख श्लोक लिखे गए। वेदव्यास की महाभारत के अलावा भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पुणे की संस्कृत महाभारत सबसे प्रामाणिक मानी जाती है। अंग्रेजी में संपूर्ण महाभारत दो बार अनुदित की गई थी। पहला अनुवाद 1883-1896 के बीच किसारी मोहन गांगुली ने किया था और दूसरा मनमंथनाथ दत्त ने 1895 से 1905 के बीच। 100 साल बाद डॉ. देबरॉय तीसरी बार संपूर्ण महाभारत का अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे हैं। - See more at: http://naidunia.jagran.com/spiritual/kehte-hain-unsolved-mysteries-of-the-mahabharata-87624#sthash.gwAtzOr0.dpuf
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