सोमवार, 15 सितंबर 2014

बदलते गाँवों ......पर मेरा एक गीत


अब रहा न अपना गाँव, जाने पहचाने ठाँव
सब कुछ बदल गया, सब कुछ बदल गया
वो नदिया लहरें नाव, किनारे बरगद वाली छाँव
सब कुछ बदल गया, सब कुछ बदल गया
पनघट पर छलिया रूप,चहकते ताल बावड़ी कूप
बरखा रानी से मिलकर, महकती माटी लगे अनूप
रंहट का ताल मयी संगीत, गले से बहते मधुरम गीत 
सब कुछ बदल गया, सब कुछ बदल गया
दादी का प्यार दुलार पड़ोसन काकी की मनुहार
चाचा ताऊ पूरा गाँव, बुजुर्गा का आदर सत्कार
नहीं अब चुनरी की सौगात, नेह की ना ही है बरसात
सब कुछ बदल गया, सब कुछ बदल गया
चोपालें बनी दुकान खेत में उगने लगे मकान
चेहरे पर चढ़ी नकाब, लुप्त भोली सच्ची मुस्कान
हो गया हटवाड़ा वीरान, लखेरा पंसारी हैरान
सब कुछ बदल गया, सब कुछ बदल गया
साँझ धूमिल भौर उदास, मंज़िलें छूती है आकाश
यहाँ पर बैगानों की भीड़, बचपन चुप युवा हताश
फिरके कई अनेकों जात, तरक़्क़ी की ये ही सौगात 
सब कुछ बदल गया, सब कुछ बदल गया
अब रहा न अपना गाँव, जाने पहचाने ठाँव
सब कुछ बदल गया, सब कुछ बदल गया

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